कभी एक दिन...... ऐसा भी तो कोई दिन आएगा जब सुबह मुस्कुराती हुई हलके हाथों से छेड़ते हुए उठाएगी .... वैसी भी तो कोई रात होगी जब चांदनी जलाएगी नहीं, ओस बरसायेगी ... एक दिन कोई कन्धा तो मिलेगा इस थके हुए सर को रखने के लिए.... एक दिन कोई दामन तो मिलेगा डूब कर रोने के लिए.... एक दिन इस मुस्कराहट त से खेलने वाला कोई मुस्कुराता चेहरा तो सामने होगा.... एक दिन इन उँगलियों के बिच में सामने के लिए तुम्हारी उंगलिया तो होगी..... वैसा भी कभी होगा जब डगमगाते हुए कदमो से जब हम चले तो तुम थामने के लिए साथ रहोगे.... और जब हम तन्हाई में बस यूँही आसमान को देखे तो तुम हमे देखो और तन्हाई मिटा दो.... और जब हम थक कर आँखें मूँद ले तो आँखों के सामने भी तुम रहो और सपनो में भी तुम..... कभी एक दिन जब तुम आओगे....
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